Delhi NCR Pollution Update: दिल्ली एनसीआर में विकराल हो चुका प्रदूषण न केवल सांस लेने में दिक्कत कर रहा है वरन लोगों की उम्र को भी 10 साल तक घटा रहा है. 

Side Effects of Air Pollution: दिल्ली- एनसीआर इन दिनों गैस चैंबर की तरह बना हुआ है. नवंबर का पहला हफ्ता चल रहा है लेकिन दिन में अब तक ठंड का नामोंनिशान नहीं है. आसमान को महीन धूल के कणों ने घेर रखा है. इस प्रदूषण की वजह से थोड़ी दूर की चीजें भी दिख नहीं पा रही हैं. हालात इतने खराब हैं कि सूरज की किरणें भी ढंग से धरती तक नहीं पहुंच पा रही हैं. इस पॉल्यूशन की वजह से लोगों का घर से बाहर निकलना दूभर हो गया है. अब दिल्ली एम्स के पूर्व डायरेक्टर डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने भी प्रदूषण के बढ़ते स्तर पर अपनी चिंता जताई है.  

इमरजेंसी में 20 प्रतिशत बढ़े मरीज

डॉक्टर गुलेरिया ने कहा, ‘हवा की गुणवत्ता बहुत खराब (Delhi NCR Pollution Update) और गंभीर श्रेणी में है. यह लोगों की स्वास्थ्य स्थितियों को प्रभावित कर सकती है. यह एक मेडिकल इमरजेंसी है. जब सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, ओजोन और पार्टिकुलेट मैटर जैसे जहरीले धुएं फेफड़ों में प्रवेश करते हैं तो यह अन्य प्रणालियों को भी प्रभावित कर सकता है. इसकी वजह इन दिनों अस्पताल की मेडिकल इमरजेंसी भी 20 प्रतिशत तक बढ़ गई है.’ 

‘सुबह व्यायाम और घर से निकलने से बचें’

गुलेरिया ने कहा, ‘बढ़ते प्रदूषण को काबू में करने के लिए हम व्यक्तिगत स्तर पर हम प्रदूषण उत्पन्न न करने और पर्यावरण के अनुकूल रहने का प्रयास कर सकते हैं. जब AQI खराब हो तो बाहर जाने से बचने का प्रयास करें. अगर बाहर निकलना जरूरी भी हो तो मास्क का इस्तेमाल करें. इसके साथ ही सुबह की सैर और बाहरी व्यायाम से बचें. चाहें तो अपने घर में एयर प्यूरिफायर लगा सकते हैं.’ 

‘प्रदूषण से हर उम्र के लोग प्रभावित’

बढ़ते वायु प्रदूषण पर मेदांता अस्पताल के वरिष्ठ फेफड़े विशेषज्ञ डॉ. अरविंद कुमार कहते हैं, ‘वायु प्रदूषण (Side Effects of Air Pollution) से सभी आयु वर्ग के लोग प्रतिकूल रूप से प्रभावित होते हैं. आपको आश्चर्य हो सकता है कि एक अजन्मे बच्चे पर क्या प्रभाव पड़ता है क्योंकि वह बच्चा सांस नहीं ले रहा है. जब बच्चे की मां सांस ले रही है, विषाक्त पदार्थ उसके फेफड़ों में चले जाते हैं. फेफड़ों के जरिए वे खून में मिक्स हो जाते हैं और नाल के जरिए वे भ्रूण तक पहुंचकर नुकसान पहुंचाते हैं. जब बच्चा पैदा होता है, तो वह उसी प्रदूषण वाली हवा को सांस में लेना शुरू कर देता है. उस हवा की गुणवत्ता यानी AQI 450-500 के आसपास है, जो शरीर को नुकसान पहुंचाने के मामले में लगभग 25-30 सिगरेट के बराबर है. उन्हें सांस लेने में हर तरह की समस्या होती है.’

हर 3 में से एक बच्चा अस्थमा से पीड़ित’

डॉ.  कुमार कहते हैं, ‘सिर से पैर तक, शरीर में ऐसा कोई अंग नहीं है जो वायु प्रदूषण (Side Effects of Air Pollution) के दुष्प्रभाव से बच सके. अब यह कहने के लिए सबूत हैं कि यह मोटापे का कारण बनता है, यह अस्थमा का कारण बनता है. जब मोटापा होता है और वायु प्रदूषण दोनों के संपर्क में आने से, अस्थमा की संभावना कई गुना अधिक हो जाती है. दिल्ली में 1,100 बच्चों के एक अध्ययन में, हमने पाया कि तीन में से एक बच्चा अस्थमा से पीड़ित है.’

‘घट रही है लोगों की 10 साल उम्र’

डॉ. अरविंद कुमार कहते हैं, ‘तीन दिन पहले, यूरोप में जारी हुई एक स्टडी के मुताबिक वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाली आबादी में स्तन कैंसर की घटनाएं अधिक होती हैं. इससे बड़ी संख्या में बीमारियां और विकलांगताएं होती हैं. समय से पहले लाखों लोगों की मौतें हो जाती हैं.  शिकागो विश्वविद्यालय का डेटा है जो कहता है कि उत्तरी भारत में, औसतन, हममें से प्रत्येक अपने जीवन के लगभग 9-10 वर्ष इसके संपर्क में आने के कारण खो देता है.’ 

‘एयर प्यूरिफायर से नहीं है बचाव’

एयर प्यूरिफायर की जरूरत पर डॉ. अरविंद कुमार कहते हैं, ‘अगर आप पूछ रहे हैं कि क्या एयर प्यूरीफायर वायु प्रदूषण (Side Effects of Air Pollution) का समाधान है, तो मेरा जवाब है नहीं. वायु प्रदूषण एक सार्वजनिक मुद्दा है और एयर प्यूरीफायर एक निजी समाधान है. अगर बाहर की हवा का AQI 500 है तो कोई भी एयर प्यूरीफायर इसे 15 या 20 तक नहीं ला सकता. अगर ले भी गया तो उसका फिल्टर जल्द ही बेकार हो जाएगा और आपको इसे एक से दो सप्ताह के अंदर ही बदलना होगा. यदि आप नहीं बदलेंगे, तो इसकी प्रभावशीलता कम होगी.’