भारत सरकार के बॉन्डों का जेपी मॉर्गन बॉन्ड सूचकांक में शामिल होना एक तरह का विश्वास मत हासिल होना है।

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने हाल के दिनों में बाह्य मोर्चे पर अस्थिरता का उचित प्रबंधन किया है। यह अस्थिरता मुख्य रूप से बाहरी झटकों से उत्पन्न हुई थी। इसके परिणामस्वरूप ऐसे समय में भी रुपये का बाहरी मूल्य स्थिर रहा है जब कुछ विकसित देशों में काफी अस्थिरता नजर आई।
इस संदर्भ में रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इसी सप्ताह आयोजित बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई इनसाइट समिट 2023 में कहा कि भारत सरकार के बॉन्डों का जेपी मॉर्गन बॉन्ड सूचकांक में शामिल होना एक तरह का विश्वास मत हासिल होना है। उनका यह कहना भी सही था कि यह एक दोधारी तलवार की तरह है।
सूचकांक में शामिल होने से जहां फंड की आवक होगी, वहीं अगर वहां इसकी स्थिति में परिवर्तन होता है तो पूंजी बाहर भी जा सकती है। बहरहाल केंद्रीय बैंक इस स्थिति में है कि वह ऐसे हालात से निपट सके। बेहतर विदेशी मुद्रा भंडार ने बाहरी क्षेत्र की अस्थिरता के प्रबंधन में भरोसा बढ़ाया है।
बहरहाल, वैश्विक अर्थव्यवस्था के वर्तमान ढांचागत बदलावों को देखें तो रिजर्व बैंक को नई चुनौतियों से निपटना पड़ सकता है।
दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों ने नीतिगत ब्याज दरों में कमी की और व्यवस्था में नकदी की उपलब्धता सुनिश्चित करके 2020 में आई महामारी से मची उथलपुथल से निपटने का प्रयास किया।
सरकारों, खासकर विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं ने भी व्यय में इजाफा किया। व्यवस्था में अतिरिक्त नकदी और विकसित देशों में शून्य के करीब ब्याज दर के कारण भारत समेत उभरते बाजारों में पूंजी की आवक बढ़ी। ऐसी आवक के कारण विनिमय दर में बदलाव होने देने के बजाय रिजर्व बैंक ने समझदारी भरा कदम उठाते हुए मुद्रा भंडार तैयार करने का निर्णय लिया।
केंद्रीय बैंक ने वैश्विक वित्तीय संकट के बाद वाली गलती नहीं दोहराई। उस समय उसने पूंजी की आवक का इस्तेमाल मुद्रा भंडार तैयार करने में नहीं किया था। इसका परिणाम 2013 के टैपर टैंट्रम (अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा परिसंपत्ति खरीद की गति कम करना) के दौरान मुद्रा बाजार की अस्थिरता के रूप में सामने आया।
रिजर्व बैंक के हस्तक्षेप के कारण 2020-21 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 100 अरब डॉलर से अधिक हो गया। यह कवायद 2021 में जारी रही और विदेशी मुद्रा भंडार 640 अरब डॉलर से अधिक हो गया।
यूक्रेन युद्ध के कारण और बड़े केंद्रीय बैंकों को यह अहसास होने के बाद कि महामारी के बाद मुद्रास्फीति की दर में इजाफा अस्थायी नहीं था, पूंजी की आवक की स्थिति उलट गई। भारत को चालू खाते की भरपाई की आवश्यकता है।
इसके चलते जनवरी और नवंबर 2022 के बीच करीब 100 अरब डॉलर की राशि बाहर गई। यदि आरबीआई ने अच्छी आवक के समय में मुद्रा भंडार नहीं तैयार किया होता तो भारत को बहुत बड़े पैमाने पर मौद्रिक अस्थिरता का सामना करना पड़ता और यह बात आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित करती।
हालांकि हाल के वर्षों में रिजर्व बैंक का प्रदर्शन अच्छा रहा है लेकिन निकट से मध्यम अवधि में उसे नई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। निकट भविष्य में सबसे बड़ा जोखिम भूराजनीति से जुड़ा है। पश्चिम एशिया में संघर्ष बढ़ने से पूंजी बाहर जाएगी। वहीं तेल कीमतों में इजाफा चालू खाते के घाटे में इजाफा कर सकता है।
इसके अलावा विश्व अर्थव्यवस्था में अन्य ढांचागत परिवर्तन भी हो रहे हैं जो समय के साथ अपनी भूमिका निभा सकते हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका का बजट घाटा ढांचागत रूप से बढ़ा है और उसमें और बचत लगेगी।
अर्थशास्त्र के कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि अमेरिका में तथा संभवत: अन्य विकसित देशों में ब्याज दरें लंबे समय तक ऊंचे स्तर पर बनी रहेंगी क्योंकि बचत और निवेश के रुझान में ढांचागत बदलाव आ रहा है जो पूंजी प्रवाह को प्रभावित करेगा। संभव है कि निकट भविष्य में दुनिया दोबारा शिथिल मौद्रिक नीति का रुख न करे।
अनिश्चित वैश्विक परिदृश्य में जहां अधिक विदेशी मुद्रा भंडार हमेशा उपयोगी होगा, वहीं भारत को वृहद आर्थिक स्थिरता में भी मजबूती लानी चाहिए। इसके लिए अन्य चीजों के अलावा मुद्रास्फीति को कम स्तर पर और स्थिर रखना होगा तथा इसके साथ ही राजकोषीय घाटे में भी तेजी से कमी लानी होगी।