भारत में मुद्रास्फीति की दर चार फीसदी के लक्ष्य से काफी अधिक है। ऐसे में निकट भविष्य में दरों में कटौती की कोई संभावना नहीं है।

भारतीय शेयर बाजारों में पिछड़े पखवाड़े गिरावट का सिलसिला रहा और शुक्रवार को बेंचमार्क निफ्टी50 की वापसी के पहले छह सत्रों में गिरावट देखने को मिली। इसकी अनुमानित वजह इजरायल और हमास के बीच छिड़ी लड़ाई है जिसकी वजह से ऊर्जा आपूर्ति में बाधा की आशंका उत्पन्न हो गई।

कच्चे तेल और गैस की कीमतें पहले ही काफी ऊंची हैं। आयातित कच्चे तेल और गैस पर भारत की निर्भरता के बारे में सभी जानते हैं। ऊंची कीमतें अनिवार्य तौर पर चालू खाते का घाटा बढ़ाएंगी और मुद्रास्फीति में भी तेजी आएगी। चूंकि वैश्विक आर्थिक वृद्धि के कमजोर बने रहने का अनुमान है और अधिकांश देश उच्च मुद्रास्फीति से जूझ रहे हैं, ऐसे में उच्च निर्यात की मदद से व्यापार समीकरणों को संतुलित करने की गुंजाइश नहीं नजर आती।

सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों के संकेत को देखें तो अधिकांश के संकेतक हमास के हमले के पहले तैयार किए गए थे। उनमें मांग में तेज सुधार का कोई संकेत नहीं नजर आता है। इसका अर्थ यह है कि अन्य निर्यातकों के लिए भी कारोबार बढ़ाने में मुश्किल होगी। हाल के महीनों में निर्यात में गिरावट आई है।

उच्च वैश्विक मुद्रास्फीति के कारण मौद्रिक सख्ती बढ़ी है और केंद्रीय बैंकों का दृष्टिकोण भी तेजी का रहेगा। बढ़ी हुई नीतिगत दरों के कारण अमेरिकी ट्रेजरी प्रतिफल में तेजी आई है जिसे आमतौर पर खतरे का संकेत माना जाता है। यह जोखिम रहित रवैये का संकेत देता है।

जब अमेरिकी प्रतिफल बढ़ता है, विदेशी निवेशक जोखिम वाली परिसंपत्ति से धन निकाल लेते हैं। रुपये में मूल्यांकित परिसंपत्तियां भी ऐसी ही हैं। उस समय वे सुरक्षित ठिकानों की ओर रुख करते हैं।

फेडरल रिजर्व की सख्त मौद्रिक नीति अन्य केंद्रीय बैंकों के लिए अपने मौद्रिक रुख को त्यागना मुश्किल बनाएगी। चाहे जो भी हो, भारत में मुद्रास्फीति की दर चार फीसदी के लक्ष्य से काफी अधिक है। ऐसे में निकट भविष्य में दरों में कटौती की कोई संभावना नहीं है।

उच्च अमेरिकी बॉन्ड प्रतिफल और नीतिगत दृष्टिकोण के कारण विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने 37,000 करोड़ रुपये से अधिक कीमत के भारतीय शेयरों की बिकवाली की। उच्च ब्याज दरें और उच्च मौद्रिक आपूर्ति दोनों शेयर बाजार मूल्यांकन के लिए नुकसानदेह हैं।

वैश्विक कारकों को छोड़ दें तो भारतीय बाजार आगामी विधानसभा चुनावों और अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव पर भी करीबी नजर रखेंगे। आमतौर पर बाजार राजनीतिक अस्थिरता की संभावनाओं को लेकर सशंकित रहते हैं। ऐसे में अगली केंद्र सरकार के बारे में स्पष्टता नहीं आने तक बहुत बड़ी मात्रा में नकदी अनिर्णय की स्थिति में रह सकती है।

उदाहरण के लिए जेफरीज के इक्विटी स्ट्रैटजी विभाग के वैश्विक प्रमुख क्रिस्टोफर वुड ने इस सप्ताह बिज़नेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई इनसाइट समिट में कहा कि यदि 2024 में भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत से सत्ता में वापसी नहीं करती है तो भारतीय शेयर बाजारों में 25 फीसदी तक की गिरावट देखने को मिल सकती है।

बहरहाल चुनाव से संबंधित कोई भी गिरावट अल्पकालिक प्रकृति की होती है। जैसा कि वरिष्ठ फंड प्रबंधक प्रशांत जैन ने उसी सम्मेलन में कहा भी कि मध्यम अवधि में चुनावों और बाजार के प्रदर्शन में अधिक संबंध नहीं नजर आता।

इनमें से कुछ अनिश्चितताओं के बावजूद भारतीय शेयर बाजार में गिरावट कुछ अनुकूल घरेलू कारकों की वजह से सीमित रह सकती है। पहली बात, घरेलू मांग, मजबूत रह सकती है और चुनाव संबंधी व्यय उन्हें तेजी प्रदान कर सकता है।

दूसरा, इक्विटी म्युचुअल फंड में आवक काफी मजबूत है। इससे पता चलता है कि आम परिवारों की बचत अभी भी शेयर बाजार में आ रही है जिससे बहुत मदद मिल रही है। वृहद मोर्चे पर हाल में पूंजी के बाहर जाने के बावजूद भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अच्छी स्थिति में है और वह वैश्विक मुद्रा बाजार में किसी भी अनिश्चितता से निपटने की स्थिति में है।

फिलहाल जो हालात हैं उनमें भारत अल्पावधि में बाहरी झटकों से निपटने की दृष्टि से बेहतर स्थिति में है। परंतु अगर पश्चिम एशिया में तनाव बढ़ता है तथा अन्य बड़ी शक्तियां लड़ाई में शामिल होती हैं तो भारतीय शेयरों समेत जोखिम वाली परिसंपत्तियों को लेकर नजरिया तेजी से बदलेगा।