Nitish Kumar Politics: नीतीश कुमार का रुख तो जगजाहिर है, पर दिलचस्प यह है कि आखिर वो कौन सी वजह है जिस कारण भारतीय जनता पार्टी नीतीश कुमार से बार-बार हाथ मिलाने के लिए तैयार हो जाती है?

BJP trust on Nitish Kumar: बिहार की सियासत में फिर नाटकीय उलटफेर देखने को मिला है. सुबह इस्तीफा देकर शाम में रिकॉर्ड 9वीं बार जेडीयू चीफ नीतीश कुमार ने प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. व्हाट्सएप पर लोग शेयर कर रहे हैं कि नीतीश शायद देश के इकलौते ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो फिर से मुख्यमंत्री बनने के लिए पूरे आत्मविश्वास के साथ सीएम पोस्ट से इस्तीफा देते हैं. जब भी दूसरे खेमे में जाते हैं यही कहते हैं कि इस गठबंधन को छोड़कर जाने का सवाल ही नहीं. लेकिन, साल-दो साल में उनकी अंतरात्मा जाग जाती है या जनता का हित बताकर वह पलटी मार जाते हैं. नीतीश का रुख तो जगजाहिर है पर दिलचस्प यह है कि आखिर वो कौन सी वजह है जिस कारण भाजपा नीतीश से बार-बार हाथ मिलाने के लिए तैयार हो जाती है?
हां, जो नेता एक दिन पहले तक सीएम को सत्ता से हटाने के लिए ‘साफा प्रतिज्ञा’ ले रहा था, दूसरे दिन नीतीश के बगल में डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठ जाता है. क्या सत्ता में ऐसा ही चलता है? अगर ऐसा है तो सिर्फ जनता को दिखाने के लिए विरोध और विचारधारा का बातें होती हैं? इसका जवाब तो कोई पार्टी नहीं दे पाएगी सिवाय इसके कि पहले गलत हो रहा था अब सही होगा? खैर, 72 साल के नीतीश की ‘पलटीमार पॉलिटिक्स’ को बीजेपी के चश्मे से देखना महत्वपूर्ण है.
1. टाइमिंग
नीतीश ने ऐसे समय में एनडीए का दामन थामा है जब 2024 का लोकसभा चुनाव करीब है. वही बीजेपी के खिलाफ I.N.D.I.A गठबंधन के सूत्रधार थे. अब उनकी वापसी से विपक्षी गठबंधन जरूर कमजोर दिखेगा. अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव भी है. बीजेपी उसके लिए भी समीकरण सेट करना चाहती है.
2. हिंदुत्व और परिवारवाद
जैसा कि 24 घंटे से भाजपा के नेता कह रहे हैं कि पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार में काफी समानताएं हैं. दोनों परिवारवाद के खिलाफ है. दोनों हिंदुत्व के एजेंडे पर चल रहे हैं.
3. पिछड़ा वर्ग
बिहार में OBC 27.12 प्रतिशत जबकि आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (EBC) यानी अत्यंत पिछड़ी जाति 36.01 प्रतिशत हैं. इसके अलावा एससी आबादी 19.65 प्रतिशत और एसटी 1.6 प्रतिशत हैं. जनरल कास्ट के लोग 15.5 प्रतिशत हैं. बिहार में ईबीसी शुरू से नीतीश का पारंपरिक वोटर रहा है. अब यह वोटबैंक भाजपा को फायदा पहुंचाएगा. साफ है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बावजूद एनडीए का खेमा शायद बिहार को लेकर आश्वस्त नहीं था.
4. जरूरत या मजबूरी
बीजेपी समझ रही है कि उसे तीसरी बार सत्ता में आना है तो हिंदीभाषी राज्यों में ज्यादा से ज्यादा सीटें निकालनी होंगी. पिछले लोकसभा चुनाव में जेडीयू+बीजेपी+एलजेपी ने मिलकर 40 में से 39 सीटें जीती थीं. बीजेपी को 17 और नीतीश की पार्टी को 16 सीटें मिली थीं. एलजेपी ने 6 सीटें जीती थीं. कांग्रेस को एक और आरजेडी को 0 सीटें मिली थीं. जेडीयू के उस पार रहते भाजपा के लिए इतनी सीटें हासिल करना चुनौती थी.
वैसे, बीजेपी आधी सीटें अपने दम पर शायद निकाल लेती लेकिन उसने 39/40 जैसा रिजल्ट हासिल करने के लिए नीतीश को साथ लाना जरूरी था. शायद भाजपा को आज भी नीतीश पर भरोसा न हो लेकिन लोकसभा चुनाव में जेडीयू उसकी जरूरत बन गई थी.
शपथ ग्रहण के बाद नीतीश ने कहा, ‘मैं पहले भी उनके एनडीए के साथ था. हम अलग-अलग रास्तों पर चले गए लेकिन अब हम साथ हैं और रहेंगे… मैं जहां था, वहां वापस आ गया और अब कहीं जाने का सवाल ही नहीं उठता’ रविवार को कुल आठ लोगों ने मंत्री पद की शपथ ली है. भाजपा नेता सम्राट चौधरी और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा उपमुख्यमंत्री होंगे.