
दिल्ली की एक लीगल फ़र्म में बतौर लीगल एसोसिएट काम करने वाले 38 साल के विजय (बदला हुआ नाम) इस बात से हैरान हैं कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) वाले टूल कैसे पलक झपकते ही क़ानूनी भाषा में कॉन्टेंट तैयार कर सकते हैं.
वो बीबीसी सहयोगी आदर्श राठौर को बातचीत में बताते हैं, “जब मैंने चैट जीपीटी के बारे में सुना तो मैंने ऊपर जाकर वादी-प्रतिवादियों के नाम, क़ानूनी धारा, संदर्भ और हर्जाने की राशि का ज़िक्र करते हुए मानहानि का नोटिस लिखने को कहा.”
“चंद पलों के अंदर मेरे सामने लीगल नोटिस तैयार था. सच कहूं तो इसकी भाषा और शैली मुझसे भी बेहतर थी. मुझे रोमांच और घबराहट, दोनों का अहसास हुआ.”
एआई यानी आर्टिफ़िशियल इंटेलिंजेंस टूल्स को लेकर कुछ ऐसा ही अनुभव 34 साल की क्लेयर का है जो छह साल से लंदन की एक बड़ी कंसल्टिंग कंपनी में काम कर रही हैं.
बीबीसी वर्कलाइफ़ पर छपे लेख के अनुसार, ‘क्लेयर को अपना काम पसंद है और वेतन भी अच्छा मिलता है मगर पिछले छह महीनों से उन्हें अपने करियर के भविष्य
को लेकर चिंता सताने लगी है.’