उत्तर प्रदेश के औरेया से दो साल पहले लापता हुआ एक शख्स अपने घर लौट आया है. उसके घर से गायब होने की कहानी जितनी भयावह है, उसके घर वापसी की दास्तान उतनी ही भावुक है. एक अच्छे घर के पढ़े लिखे इस नौजवान को बिल्कुल भी नहीं पता था कि उसकी किस्मत में ऐसा दिन लिखा है.

उत्तर प्रदेश के औरेया से दो साल पहले लापता हुआ एक शख्स अपने घर लौट आया है. उसके घर से गायब होने की कहानी जितनी भयावह है, उसके घर वापसी की दास्तान उतनी ही भावुक है. एक अच्छे घर के पढ़े लिखे इस नौजवान को बिल्कुल भी नहीं पता था कि उसकी किस्मत में ऐसा दिन लिखा है. एक दिन वो अपने शहर से गायब हुआ, उसे जब होश आया तो वो दक्षिण भारत के किसी स्थान पर खुद को पाया. वहां उसके साथ हर रोज मारपीट की जाती. उसे मजदूरों की तरह काम कराया जाता. हर रोज नशे का इंजेक्शन दिया जाता, ताकि उसे किसी बात की सुध न रहे. लेकिन एक दिन वो वहां से भाग निकला. जैसे-तैसे ट्रेनों को पकड़ते हुए अपने कानपुर पहुंच गया. वहां पुलिसवालों की सूझबूझ की वजह से वो अपने घर वापस जा पाया. आइए पूरी कहानी जानते हैं.
27 अप्रैल रात 8.00 बजे कानपुर सेंट्रल रेलवे स्टेशन
उत्तर भारत के सबसे व्यस्त माने जाने वाले रेलवे स्टेशनों में से कानपुर सेंट्रल के प्लेटफॉर्म नंबर 1 पर एक दुबला-पतला सा शख्स कूड़ेदान में कुछ ढूंढ रहा था. तभी स्टेशन पर गश्त कर रही आरपीएफ यानी रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स की एक टीम उधर से गुजरी. वो कूड़ेदान से पानी की खाली बोतलें उठाता, उन्हें देखता और वापस कूड़ेदान में डाल देता. आरपीएफ को लगा कि शायद वो कोई भिखारी है. लेकिन चेहरे पर बढ़ी हुई दाढ़ी और शक्ल सूरत से बेहद थके हुए नजर आ रहे इस आदमी को ऐसा करते देख कर पुलिस वालों को ये समझते देर नहीं लगी कि वो प्यासा है और शायद पानी की तलाश में ही कूड़ेदान से पानी की बोतलें उठा-उठा कर उन्हें देख रहा है. ऐसे में पुलिसवालों ने उसे टोका और उसे पीने के लिए एक पानी की बोतल थमा दी. उसने एक सांस में सारा का सारा बोतल पी लिया.
प्यास बुझते ही उसने कृतज्ञता भरी निगाहों से पुलिसवालों की ओर देखा और कहा, ”थैंक्यू वेरी मच”. लेकिन ये बात पुलिसवालों को थोड़ी अजीब सी लगी. क्योंकि पुलिसवालों को लग रहा था कि शायद वो कोई भिखारी है, जो यूं ही मांग कर अपना पेट भरता है. रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड जैसी जगहों पर भटक कर जिंदगी गुजारता है. लेकिन यहां तो ये शख्स इंग्लिश बोल रहा था. इंग्लिश भी कुछ ऐसे अंदाज़ में जिसे सुन कर पुलिसवालों को ये लगने लगा कि शायद ये शख्स पढ़ा लिखा है. अब पुलिसवालों ने उससे उसका नाम पता पूछा, लेकिन उनके किसी भी सवाल का जवाब देने में वो बुरी तरह घबरा रहा था. ऐसे में पुलिस की टीम उसे लेकर आरपीएफ के थाने में पहुंची. पुलिस को उस पर शक हो चला था. उन्हें लग रहा था कि वो अपनी पहचान छुपाने की कोशिश कर रहा हो.
एक ऐसी कहानी, जिसके बारे में किसी ने सोचा तक नहीं था
थाने में पहुंचने के बाद जब पुलिस वालों ने उससे ठंडे दिमाग़ से पूछताछ की, तो एक ऐसी कहानी सामने आई, जिसके बारे में किसी ने भी नहीं सोचा था. उस आदमी ने अपना नाम महावीर सिंह बताया और जानकारी दी कि वो उत्तर प्रदेश के ही औरेया जिले में पड़ने वाले बिधुना कस्बे के गांव सामायन का रहने वाला है. संपन्न परिवार से है और वो खुद भी ग्रैजुएट यानी पढ़ा लिखा है. लेकिन अब सवाल ये था कि अगर वो वाकई सच बोल रहा था, तो फिर वो अपने घर से बमुश्किल सवा सौ किलोमीटर दूर कानपुर रेलवे स्टेशन पर यूं भिखारी वाली हालत में क्यों भटक रहा था? कहीं ऐसा तो नहीं कि वो कोई अपराधी था और पुलिसवालों से बचने के लिए उसने अपना ये हुलिया बना रखा था? अब पुलिस के लिए उसके दिए गए जवाबों का तस्दीक करना जरूरी हो गया था.
पुलिस ने चचेरे भाई से कराई बात, उसे यकीन ही नहीं हुआ
ऐसे में पुलिस ने उससे अपने घरवालों का कोई फोन नंबर पूछा. तब महावीर ने उन्हें एक नंबर दिया. पुलिस ने जैसे ही उस नंबर पर बात की, तो पता चला कि उनके पास थाने में मौजूद शख्स का नाम वाकई महावीर है और बिधुना का ही रहने वाला है. दरअसल, महावीर ने जिस आदमी का फोन नंबर पुलिस को दिया था वो कोई और नहीं बल्कि उसका चचेरा भाई रवींद्र सिंह था. लेकिन रवींद्र इस बात ही हैरान हो गया कि आखिर महावीर पुलिस वालों को कहां से मिला? क्योंकि वो तो करीब दो साल पहले ऐसे गायब हो गया था कि उसके पास उसका कोई पता ही नहीं चला. घर वाले उसे दो सालों से लगातार ढूंढ रहे थे और अब तो घरवालों की उम्मीद भी कमज़ोर पड़ने लगी थी. आरपीएफ ने उसके चचेरे भाई को पूरी बात बताई. उससे उसकी बात भी करवाई.

जब रवींद्र को तसल्ली हो गई कि वो उसका खो चुका भाई महावीर ही है, तो फिर उसने पुलिस वालों से उसे कुछ देर तक अपने पास ही रखने को कहा और बताया कि वो अभी उसे लेने के लिए गुरुग्राम से कानपुर रवाना हो रहा है. असल में उसका भाई रवींद्र गुरुग्राम में रह कर काम करता है. इस बीच उसने अपने घरवालों और कुछ रिश्तेदारों को भी महावीर के मिल जाने और उसके कानपुर स्टेशन में आरपीएफ थाने में होने की बात बता दी. अब महावीर का डर भी थोड़ा कम हो चुका था. उसे लगने लगा था कि वो सुरक्षित जगह पर है और जल्द ही उसके घरवाले उसे लेने आ रहे हैं. उसको कॉन्फिडेंस भी आने लगा था.
महावीर ने सुनाई 2 वर्षों तक गायब रहने की हैरतअंगेज कहानी
मारते-पीटते और नशीला इंजेक्शन लगाकर कराते थे मजदूरी
इसके बाद तो फिर उसे कोई होश ही नहीं रहा और जब उसे दोबारा होश आया, तो उसने खुद को एक बाथरूम में बंद पाया. महावीर की मानें तो इसके बाद उसे बाथरूम से निकाल कर एक कमरे में बंद कर दिया गया, जहां उसके जैसे और भी कई लोग पहले से बंद थे. उसे अगवा करने वाले लोगों ने उससे उसका एटीएम कार्ड और पिन भी ले लिया था और उसे अक्सर मारते-पीटते और नशीला इंजेक्शन लगाते थे. आखिरकार कुछ दिनों के बाद उसे और उसके साथ बंद लोगों को उस कमरे से निकाल कर कुछ हथियारबंद लोग उसे एक खान जैसी जगह पर लेकर गए, जहां उससे मेहनत मजदूरी करवाई जाती रही. महावीर की मानें तो ये लोग अक्सर उन सबके साथ मारपीट करते थे और काम से जरा भी ढिलाई होने पर जान से मार देने की धमकी देते थे.
ऐसे में जब पुलिस वालों ने उसके गायब हो जाने और दो सालों तक गायब रहने की कहानी पूछी, तो महावीर ने जो बात बताई, उसने पुलिस वालों को भी हैरान कर दिया. उसने बताया कि अब से कोई दो साल पहले उसे कुछ गुमनाम लोगों ने अगवा कर लिया था. इसके बाद से उसे बंधक बना कर लगातार उससे काम करवाते रहे और आनाकानी करने पर उसे टॉर्चर किया जाता था. 26 जून 2022 को औरैया के बिधुना में कुछ रुपए निकालने के लिए किसी एटीएम बूथ की तरफ गया था. वहां अपने एक बैंक कर्मी दोस्त की मदद से कुछ कैश निकलवा लिए. महावीर का कहना था कि कैश लेकर वो अपने घर वापस जाने के लिए बस स्टॉप पर अपने बस का इंतजार कर रहा था, तभी एक कार उसके पास आ कर रुकी. उससे उतरे लोगों ने पीछे से उसके मुंह पर एक रूमाल रख दिया.\

नॉर्थ से पहुंच गया साउथ, लोगों की बातची से समझ आया
महावीर को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि वो कहां है, क्योंकि ना तो वो जगह जानी पहचानी थी और ना ही उसे उन लोगों की भाषा ही समझ में आती थी. धीरे-धीरे वहां रहते हुए उसे ये अहसास हो गया कि वो जगह कहीं साउथ इंडिया में है और वो लोग किसी दक्षिण भारतीय भाषा में एक-दूसरे से बात करते थे. उधर, बिधुना से उसके गायब हो जाने के बाद कुछ दिनों तक तो उसके घर के लोग काफी परेशान रहे, उसे अपने तौर पर ढूंढते रहे, लेकिन जब उसका कोई पता नहीं चला तो उन्होंने बिधुना थाने में ही उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवा दी. लेकिन तब से लेकर आज तक घरवालों ने जितनी बार भी बिधुना पुलिस से बात की उन्हें उसे ढूंढने का दिलासा देने के सिवाय कुछ नहीं मिला. इस तरह देखा जाए, तो घरवालों की उम्मीदें भी कमजोर पड़ने लगी थीं.
एक रात मौका मिलते ही बदमाशों के चंगुल से भागा महावीर
महावीर के मुताबिक करीब दो सालों तक बदमाशों के शिकंजे में रहने के बाद इसी साल अप्रैल महीने में एक रोज़ रात को उसे अपने कैद वाले कमरे से निकलने का मौका मिल गया. वो रात को ही कमरे से बाहर निकला और पैदल चलने लगा. इसके बाद बिना कुछ सोचे समझे वो रात भर लगातार पैदल चलता रहा. तब रास्ते में उसे एक रेल की पटरी दिखाई दी. अब वो पटरी के साथ-साथ आगे चलता रहा और फिर एक स्टेशन पर पहुंचा. उसे कुछ पता नहीं था कि वो कौन सा स्टेशन है और वहां से कौन सी ट्रेन किस जगह के लिए जाती है. लेकिन इसके बावजूद जैसे ही उस स्टेशन पर एक ट्रेन पहुंची, वो उसमें सवार हो गया क्योंकि वो वहां से जल्द से जल्द दूर निकल जाना चाहता था. इस तरह कई ट्रेनें बदल कर वो एक रोज़ बिहार के दरभंगा रेलवे स्टेशन में पहुंच गया.
भटकते-भटकते कानपुर पहुंचे महावीर की पुलिस से हुई मुलाकात
वहां पहुंच कर पहली बार उसे अहसास हुआ कि वो कहां और किस जगह पर है. बस इसी के बाद उसने कानपुर जाने के लिए किसी ट्रेन का पता किया और 27 अप्रैल को किसी तरह कानपुर पहुंचा. इस दौरान वो लोगों से मिलने वाले भोजन और पानी पर जिंदा रहा और लोग उसे भिखारी समझते रहे. लेकिन आखिरकार पुलिस के पानी पिलाने के बाद उसके कहे गए अंग्रेजी के तीन शब्दों ने उसकी सच्चाई सामने ला दी. उसे उसके घरवालों से मिला दिया. जब तक महावीर की आपबीती खत्म हुई, तब तक उसके रिश्तेदार कानपुर के आरपीएफ पुलिस स्टेशन में उसे लेने पहुंच चुके थे. कुछ देर बाद गुरुग्राम से चला उसका भाई रवींद्र भी कानपुर में था. फिर तो जब उसकी पूरे दो सालों के बाद अपने भाई और घरवालों से मुलाकात हुई, तो फिर कोई भी अपनी भावनाओं को काबू में नहीं रख सका.